जनपद के यमुनापार क्षेत्र के लोग सदियों से ही आस्थावान रहे हैं। यहां के कण-कण में भगवान बसते हैं ऐसा इस क्षेत्र की परिक्रमा करने के पश्चात महसूस होता है। यहां के हर एक कोस पर स्थित ऐतिहासिक मंदिरों के बिछे जाल से प्रतीत होता है। पतित पावनी माता गंगा और तमसा नदी के तट के साथ ही विंघ्यांचल की पहाड़ी की गोद में बसा यह क्षेत्र अपने आप में एक रमणीय और पवित्र है। यहां के लोगां की आस्था का ही परिणाम है कि ऐतिहासिक धरोहरों के रूप में मिली बहुमुल्य धरोहरों को सुरक्षित सहेज कर रखा गया है।
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मेजा तहसील क्षेत्र में स्थित विंध्य पर्वत की तलहटी में बोलन धाम, पहड़ी महादेव के साथ ही माता शारदा व खोही माता का मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। शाम की सुरमई पहाड़ी पर बसे इस मंदिर की आभा को और भी भव्य बनाती है।
तहसील क्षेत्र अंतर्गत जमुआ गांव के पहाड़ी पर खोही माता का दरबार है। ऐसी मान्यता है कि यहां पहाड़ी पर हमेशा पानी निकलता रहता है। ग्रामीणों की माने तो यहां गर्मी बरसात ठंडी हमेशा एक ही मात्रा में पानी निकलता रहता है। पहाड़ी पर माता शारदा का मंदिर है और नीचे जहां पानी निकलता है वहां खोही माता का मंदिर है। वहां पानी दो स्थानों पर निकलता है गांव के लोग हमेशा सुबह जाते हैं वहां स्नान करते हैं और खोही माता के दर्शन करके घर आते हैं। गांव के ही शिवमणि कुशवाहा ने बताया कि सावन के महीने में यहां हमेशा 200 से 300 की संख्या में लोग उपस्थित रहते हैं जहां से पानी निकलता है वह प्राकृतिक है। बूढ़े बुजुर्गों ने बताया की हम लोगों की ना जानकारी पहले से ही यहां हमेशा इसी तरीके से पानी निकलता आ रहा है यह प्राकृतिक है इसकी जानकारी हमारे पूर्वजों ने भी नहीं दे पाई, कहा जाता है कि महाभारत काल में जब अर्जुन अपने भाइयों और माता के साथ इसी जंगल से होकर जा रहे थे बीच में रास्ते में राक्षस और भीम की लड़ाई हुई थी जिससे और सब भाई आगे चले गए थे उन्होंने भीम को नहीं देखा तो सोचा कि भीम वीरगति को प्राप्त हो गए हैं तो उन्होंने भीम का पिंडा पारने के लिए पानी की आवश्यकता हुई तो उन्होंने धनुष निकाला एक बाण धरती में मारा तो वहां पानी निकलने लगा, जिससे उन्होंने अपना काम किया उस स्थान को बाबा बोलन नाथ धाम मेजा खास कहा जाता है।
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ग्रामीणों की माने तो आगे अर्जुन ने जमुआ गांव के पहाड़ी पर खोही माता के दरबार के पास वहां भी तीर मारी थी वहां भी 12 महीने हमेशा पानी निकलता रहता है। वहां का सुंदर और भव्य स्थान देखकर ऐसा लगता है कि देवस्थान है। वहां के पुजारियों बुजुर्गो की माने तो खोही माता के मंदिर से आगे 100 मीटर की दूरी पर भीम के पैरों के निशान बने हुए हैं, जहां लोगों ने वहां भी माला फूल चढ़ाकर देवस्थल जैसा बना दिया है।
लोगों की मान्यता है कि खोही माता के दरबार लोग आते हैं और प्रसन्न होकर जाते हैं गांव के शिवमणि कुशवाहा ने बताया कि कई बार यहां खोही माता के दरबार तक सड़क बनाने के लिए संबंधित ठेकेदारों से कहा गया तो खोही माता के दरबार के पहाड़ी के नीचे काली सड़क बनाई गई है। यहां हर वर्ष एक बार मेला लगता है। गांव वाले मिलकर यहां भंडारे का आयोजन करते रहते हैं। गांव के बच्चे बुजुर्ग माताए,ं बहने सभी खोही माता के दरबार में स्नान करने के लिए जाते हैं। बताया जाता है कि यहां पर छोटी-छोटी गुफाएं भी थी लेकिन खनन विभाग के एक ठेकेदार ने यहां उस पत्थर को तुड़वा दिया। पहाड़ी पर पत्थर तुड़वाने के लिए लिए बारूद लेने गया था, बारूद लेकर आते समय उसकी सड़क दुर्घटना एक्सीडेंट में मौत हो गई थी। गांव वालों ने बताया कि गांव के सभी लोग खोही माता की पूजा करते हैं वहां जो कुंड बना हुआ है वहां कुंड से हमेशा पानी निकलता रहता है।
फिलहाल देखा जाय तो उक्त मंदिर लोगों में आस्था का केंद्र बना हुआ है। लोगों का कहना है कि जब तक वह दिन एकाध बार भी मंदिर नहीं पहुंच जाते तो मन उदास बना रहता है।
कुछ ग्रामीणों का कहना है कि मंदिर प्रांगण के आसपास महाभारत काल के काफी चिन्ह दिखाई देते हैं जो धीरे-धीरे नष्ट होते जा रहे हैं। शासन और प्रशासन को चाहिए कि ऐसे स्थानों को चिन्हित कर उसे पर्यटक के मानचित्र पर लाने का कार्य करे। जिससे स्थानीय लोगों की बेरोजगारी दूर हो और रोजगार सुलभ हो सके। राजकोष को लाभ हो।